Thursday, November 25, 2010

समय

कभैं सुखल गुजरौ कभैं दुखल गुजरौ,
जौस लै गुजरौ समय भौल गुजरौ।

पोरुं तक  बचपन छी, बेइ तक जवानी,
लागण नि रोय यू आखां में इतु समय गुजरौ॥

बहुत कोशिश करी, करूं मुट्ठी में पर कतु  पकड़ पांई,
म्यर सामणी बै यूँ समय गुजरौ।

झपकौंण पलकों कैं और सितण आँखोंक जरूरी छी,
हमेशा खुली आँखांल कैक समय गुजरौ॥

ऊं डाव बोठों पर ऎ गैई आई नयी पात,
जनर पतझड मै बहौत बुर बखत गुजरौ !

आज उमर बितणक बाद योस लागणों,
जाणि कास कास कामौं मैं हमर समय गुजरौ॥
......................मदन मोहन बिष्ट

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