Saturday, November 12, 2011

डर लागैं....


क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं,
क्वे जब स्वैण दिखूं तो डर लागैं।

डुबी छी अन्यार में यसि जिन्दगी,
कि आब तो उज्याव में जाण में डर लागैं।

मांग न्है आज तक कैहैणि लै के,
फ़िर लै हाथ फ़ैलूण में डर लागैं।

देईं ध्वाक आपणोंल इतुक ज्यादा,
कि आब क्वे आपण बतूं तो डर लागैं।

जागणै उम्मीद आइ फ़िर जिन्दगी मैं,
देखियणै एक आस आइ कत्तिकै बै।

सोचौ कि कै दियू खुशीक यौ बात सब्बू थैं,
मगर दिलेकि बात सबुकैं बतूण मैं डर लागैं।

क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं...

        ~मदन मोहन बिष्ट,  रुद्रपुर-उत्तराखण्ड~

Friday, June 24, 2011

गौंक हाल

गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणै गौं पनाक यास हाल देख बे...

बाट-घाटां सिसौण जामी छू, पाख मैं कुरिक झाल देख बे,
उधरि छन सब भिड गाडां पन, दरकी कुडिक दीवाल देख बे, 
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

बाखई-बाखाइ सुन्न पडी छन, जो घर छिन उनार हाल देख बे,
दुखी-दुखी जा  हंसन मुखाड सब  पधानिक पर चाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

नल बिन पाणि और नौव बांजी गो पाणिक हाहाकार देख बे,
बोठ, लगिल सब सुकी सुकी छन  गोरु बाछ लै बीमार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

सुवर, बानर भौते बढ गेईं, गौं वाल छन बेहाल देख बे,
फ़ूल, फ़ल ना दूद धिनाइ छू नान तिन चिपकी गाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

जू-शराब छु आम चलन में चुप पट्वारि- थाणदार देख बे,
सासु-ब्वारी सबै दुखी छन भोवाक करणधार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

निगेंइ हालीं सब गौं सरकारैल खुश छु उनार हाल देख बे,
आग लागणै म्यार भितेर आब शहरों कैं खुशहाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
...( मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखण्ड)...

Thursday, May 19, 2011

आस


एक दुआ मांगणक खातिर सारि रात जागूं,
पर क्वे तार अकाश बै टुट न्हैं।
बचै बे नजर ऊं न्है गोछी बगल बै,
हमार हाल चाल तक के पुछ न्हैं।
हम सांस रोकि बे देखनै रयूं, 
उ जानै रयीं और हमूल लै उकैं रोक न्हैं।
यां बै जाई बाद लै ऊ हंसते खेलते रूंछी, 
यां आइ तक पाणि आंखोंक  सुक न्हैं।
भौत पैली बै आखोंक पछ्याण छी हमेरि,
पर कभैं कैलै मनाय न्हैं कभैं क्वे रिसाय न्हैं। 
एक आस मिलणेकि दिल में बसाई छि,
आज ऊ दुनी बटिकै हिट दे फ़िर लै हमुकैं बताय न्हैं।
........मदन मोहन बिष्ट, रूद्रपुर, ऊत्तराखन्ड  

Tuesday, April 19, 2011

बारिश


 
तुमूल तो बारिश कें सिर्फ़ बरसते हुए देखौ,
पर मील बारिश कैं कुछ कहते सुणते देखौ। 


तुमूल  देखौ  बारिशक जल थल हर साल, 
मील बूदों कं पलकों पर मचलते देखो। 


कसीक मांगुल फ़िर बारिश अलबेर  सावन में 'मदन',
यों आखोंल सावन में दुनियां कं उजडते देखौ। 


सिख गोईं मि लै आब बारिशों में जीणेकि कला, 
और फिर सब्बूंल मिकैं हमेशा हंसते देखौ। 

...................................... मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखन्ड
 

Monday, March 14, 2011

मलाल...



वीक हंसण तो कमाल छी
पर वीक जाणक भ्हौत मलाल छी,
मुख पर हमार लगे गे ऊ दाग
हमूल समझौ ऊ गुलाल छी। 

रात भर ऊंछी वीकै स्वैण
दिन भर वीकै खयाल छी,
उडि गे नीन आब म्येरि आंखोंकि
वीक कौस ऊ सवाल छी।

करण बैठूं दिलक सौद जब लै "मदन"
जो लै मिलौ ऊ दलाल छी॥

........मदन मोहन बिष्ट, शक्ति विहार, रुद्रपुर.....

Thursday, February 3, 2011

परिचय


शिब्दाल मिकैं ब्याव आपुं घर मैं बुला,
आपण चारों च्यालां दगै म्यर परिचय करा।
यो ठुल च्यल परकाश छू,
एम ए बीएड पास छू मास्टरीक शौक छी पर बण नि पाय,
आब कस्सि.. लै नौकरीक तलाश छू।
दुसर च्यल हालै में दिल्लि बै ऎ रौ,
के कूनी ऊ.. एमबीएक डिग्री ल्यै रौ।
तिसर तौ दाडि वाव जो लागणौं देवदास,
कम्पूटरेकि क्याप्प.. डिग्री छु तैक पास।
पार ऊ जो पट्याल में भै रौ ऊ सब्बुं है नान च्यल छू,
पढाइ लिखाइ के करि न्हैं, तैक चाऊमीनौक ठ्यल छू।
मील कौ शिबदा.. तकैं घर बे निकालो,
दाज्यू.. आपण घरेकि इज्जत कें सम्भालो।
शिबदाल कौ निकाइ तो तैकं पैलिकै दिंछि ’मदन’, पर तौ भौतै काम ऊं।
बांकि तो सबै यूं बेरोजगार छन, घरक खर्च सब तै तो चलूं ॥
                                               ................................. मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर

Monday, January 24, 2011

दव्न्द


- कसूर -

सच तो यो छु कि कसूर आपणै छी,
चांद पकडणकि कोशिस करी
आकाश जमीन पर मांगौ
ढुंगों पर फ़ूल खिलोण चाहीं
कानां में खुश्बूकि चाहत करी
बरफ़ में निमैल(गर्मी) चानै रयूं 
ख्वाब जो देखीं सोचौ सच है जाल 
यैक हमुकैं सजा तो मिलणै छी
सच तो यो छु कि कसूर आपणै छी।


- वादा -

नि पुछो अल्लै कि  मन्जिल कां छु  
आइ सिर्फ़ जाणक इरादा करी छू,
लफ़ाइ नि जूं कतिकै बाटां पन
हौसला लै खूब ज्यादा भरी छू,
नि हारुल कभैं यां ’मदन’ उमर भर
कैहैंणी नै आपण थैं यौ वादा करी छू।

.......................मदन मोहन बिष्ट