Monday, November 25, 2013

फर्ज...


भुलि जया सब कुछ मगर मै-बाप कें झन भूलिया,

कर्ज भौते इज-बाबुक ख्वार में चड़ी झन भूलिया।

मुखेडि तुमरि देखुहं पूजी उनूल जांणि को को द्याप्त,

जनम हूँण पर भैंट चढ़ै फिर बात यौ झन भूलिया।

शांक घांट और थाई बजै सार्रे गों चुल न्यौत दे,

गुड मिशिरि घर घर बटै बात यौ झन भूलिया।

आँगाक लुकुड गू मूत में सानि दिछिए जब लै तू,

ध्वे पोछि तिकें फिर छाति लगा प्यार ऊ झन भूलिया

हूंछिये जब जब बिमार तू इज लै खान्छी तेरि दवै,

राई परखी टुन करा दुलार ऊ झन भूलिया

ह्यौना महेंण रात में तू करछिये जब गिलि गुदेड़ि

गिल में सित तिकैं सुखी सिता त्याग ऊ झन भूलिया

गू गुबर में हाथ भर बे लिपछिये जब तू दिवार

हाय छी: छी: कर नऊछी बात ऊ झन भूलिया

घुन घुनां खिसकछिए जब बैठण लै ईजैलै सिखा

बुलाण इज बाबुल सिखा बात यौ झन भूलिया।

गास गिजक रोक बे काखि में बिठा तिकण खवा

त्यर घत्बताई खांछी छी इज प्यार ऊ झन भूलिया

डबल क्वे कतुकै कमाओ पूछो ना मै-बाप कें,

गाड़ बगाओ यसि कमाई बात यौ झन भूलिया।

डबलोंल मिलजाल सब तिकैं मै-बाप पर मिल नि सकन

सीस उनार खुट नवा नित नियम यौ झन भूलिया।

करछै जो उम्मीद सुख:कि आपण नान्तिना थैं तू ,

सेवा मै-बाबुक करण छू फर्ज यौ झन भूलिया।

भुलि जया सब कुछ मगर मै-बाप कें झन भूलिया,

कर्ज भौते इज-बाबुक ख्वार में चड़ी झन भूलिया।


~मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर-उत्तराखण्ड