क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं,
क्वे जब स्वैण दिखूं तो डर लागैं।
डुबी छी अन्यार में यसि जिन्दगी,
कि आब तो उज्याव में जाण में डर लागैं।
मांग न्है आज तक कैहैणि लै के,
फ़िर लै हाथ फ़ैलूण में डर लागैं।
देईं ध्वाक आपणोंल इतुक ज्यादा,
कि आब क्वे आपण बतूं तो डर लागैं।
जागणै उम्मीद आइ फ़िर जिन्दगी मैं,
देखियणै एक आस आइ कत्तिकै बै।
सोचौ कि कै दियू खुशीक यौ बात सब्बू थैं,
मगर दिलेकि बात सबुकैं बतूण मैं डर लागैं।
क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं...
~मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर-उत्तराखण्ड~