Thursday, May 19, 2011

आस


एक दुआ मांगणक खातिर सारि रात जागूं,
पर क्वे तार अकाश बै टुट न्हैं।
बचै बे नजर ऊं न्है गोछी बगल बै,
हमार हाल चाल तक के पुछ न्हैं।
हम सांस रोकि बे देखनै रयूं, 
उ जानै रयीं और हमूल लै उकैं रोक न्हैं।
यां बै जाई बाद लै ऊ हंसते खेलते रूंछी, 
यां आइ तक पाणि आंखोंक  सुक न्हैं।
भौत पैली बै आखोंक पछ्याण छी हमेरि,
पर कभैं कैलै मनाय न्हैं कभैं क्वे रिसाय न्हैं। 
एक आस मिलणेकि दिल में बसाई छि,
आज ऊ दुनी बटिकै हिट दे फ़िर लै हमुकैं बताय न्हैं।
........मदन मोहन बिष्ट, रूद्रपुर, ऊत्तराखन्ड