Monday, April 14, 2014

चिंता

मुलकाक यास बर्बादीक असार नजर ऊणई,
चोरोंक दगाड याँ चोकीदार नजर ऊणई

अन्यार आब कसी मिटोल त्वी बता भगवान्, 
याँ उज्यावक दुश्मन सब चोकीदार नजर ऊणई

हर गौं गाड़, हर सड़क पर, मौन छू ज़िंदगी ,
हर जाग मरघटाक जास हालात नजर ऊणई

को सुणोल याँ आज द्रोपतीक चीख़ पुकार,
हर जाग दुस्साशन थाणदार नजर ऊणई

सत्ता दगड समझौता करबे बिकगे लेखनी लै,
ख़बरों कें सिर्फ अब बाज़ार नज़र ऊणई

सच्चाईक दगड द्यूण बण जां जुर्म आब,
सच और बेक़सूर आज गुनहगार नज़र ऊणई

मुल्कक हिफाज़त सौंपि छू जनार हाथों मे,
ऊँ चोकीदारों में लै आज गद्दार नज़र ऊणई

खंड खंड मे खंडित हैगो अखंड भारत आज,
हर जात, हर धर्म में ठेकेदार नज़र ऊणई....
~मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर 



Monday, November 25, 2013

फर्ज...


भुलि जया सब कुछ मगर मै-बाप कें झन भूलिया,

कर्ज भौते इज-बाबुक ख्वार में चड़ी झन भूलिया।

मुखेडि तुमरि देखुहं पूजी उनूल जांणि को को द्याप्त,

जनम हूँण पर भैंट चढ़ै फिर बात यौ झन भूलिया।

शांक घांट और थाई बजै सार्रे गों चुल न्यौत दे,

गुड मिशिरि घर घर बटै बात यौ झन भूलिया।

आँगाक लुकुड गू मूत में सानि दिछिए जब लै तू,

ध्वे पोछि तिकें फिर छाति लगा प्यार ऊ झन भूलिया

हूंछिये जब जब बिमार तू इज लै खान्छी तेरि दवै,

राई परखी टुन करा दुलार ऊ झन भूलिया

ह्यौना महेंण रात में तू करछिये जब गिलि गुदेड़ि

गिल में सित तिकैं सुखी सिता त्याग ऊ झन भूलिया

गू गुबर में हाथ भर बे लिपछिये जब तू दिवार

हाय छी: छी: कर नऊछी बात ऊ झन भूलिया

घुन घुनां खिसकछिए जब बैठण लै ईजैलै सिखा

बुलाण इज बाबुल सिखा बात यौ झन भूलिया।

गास गिजक रोक बे काखि में बिठा तिकण खवा

त्यर घत्बताई खांछी छी इज प्यार ऊ झन भूलिया

डबल क्वे कतुकै कमाओ पूछो ना मै-बाप कें,

गाड़ बगाओ यसि कमाई बात यौ झन भूलिया।

डबलोंल मिलजाल सब तिकैं मै-बाप पर मिल नि सकन

सीस उनार खुट नवा नित नियम यौ झन भूलिया।

करछै जो उम्मीद सुख:कि आपण नान्तिना थैं तू ,

सेवा मै-बाबुक करण छू फर्ज यौ झन भूलिया।

भुलि जया सब कुछ मगर मै-बाप कें झन भूलिया,

कर्ज भौते इज-बाबुक ख्वार में चड़ी झन भूलिया।


~मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर-उत्तराखण्ड

Friday, December 21, 2012

अधमरी घाम

डुन जौस घ्वड में बैठी बेई तक
जो घाम अधमरी जौ ऎ रोछी,
आज उ आयै न्हैत
सब रात्ति पर बै चै रौछी।

आज सकर जरूरत छी
घाम रनकर आयै न्हैत,
रात्तिब्याण नै ध्वे ऎ जाल
रुडिक दिनौ जब चैनै न्हैंत।

हौल पड रौ अन्यार पट्ट
तुस्यारल सब अरडपट्ट
एक घामक सहार छी
तैक लै हैगे यसि खडपट्ट।

नानतिन देखो लकडी जै गेयीं
बुड-बाडि सब सिकोडी जै गेयीं,
चाड पिटंग लै सन्ट छन
ज्वान लै सब ठंड छन।

कसी चलाला हीटर गीजर
बिजुलिक ख्वार लै पड रौ बज्जर,
नि जाओ हालात बिगड
ल्यूंण पडूं आब एक सिगड।

डुन जौस घ्वड में बैठी बेई तक
जो घाम अधमरी जौ ऎ रोछी,
आज उ आयै न्हैत
सब रात्ति पर बै चै रौछी।
--- मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर उत्तराखन्ड---

Tuesday, August 28, 2012

सीख

आंसुओ तुम आंखोंक क्वाण पन आई नि करो,
घराक हालात दुनी कें बताई नि करो।
लोग मुट्ठी में लूण भर बे फ़िरणई,
ज़खम आपण सब्बू कें दिखाई नि करो।

आंख बची रौली तो स्वैण देखते रौला,
खाल्ली झुट स्वैण आखों में सजाई नि करो।
जे आपण हाथम छू उकैं भौत समझो,
लालच में ईमान धरम लुटाई नि करो।

कास-कास दिन ऊंनी और निकल जानी,
मणी सा दुख में हा-हाकार मचाई नि करो।
कमी भलै हैजो पर हाथ नि फ़ैलूंण पडो,
चादर बटी भैर पैर फ़ैलाई नि करो।

स्याप हमेशा खुश्बूक आसपासै रूनी,
खुशबू वाल पेड आंगन में सजाई नि करो।
जै पर भरोस हूं वी ध्वाक दीजां,
हर आदिम कें चुल तक लिजाई नि करो।

लोग आंगूं पकड बे गिरेवान तक बढ जानी,
बिना सोचिये मददक हाथ बढाई नि करो।
लोग हाथ मिलै बे आपण आंगू तक गिणनी ,
हर मिलणी वाल कैं छाति पर लगाई नि करो।

ख्वारम खुट धर बे लोग मांथि जाणक फ़िराक में छन
गरदन आपणि हर जाग पै झुकाई नि करो।
जिन्दगीक पन्नों पर पेन्सिल है ज्यादा रबड नि घिसो,
फ़ाटी पन्न जोडण मुस्किल हूं गल्ती इसी  बार बार दोहराई नि करो ।

आज बखतौक संदेश यो छू समझो ’मदन’,

साथ, सांस और स्वैण  कभतै लै टुट सकनी
इनू पर ज्यादा भरोस जताई नि करो।
------- मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखण्ड .........
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Thursday, April 5, 2012

एक जास छिन







दीपक जुगनूं चांद सितारे एक जास छिन,

यानी सब गमक मारी एक जास छिन।


कधिनें अन्यार र्में  ऎ बेर देख लिये चंदा,

म्यार आंसू और तों तारे एक जास छिन।


गाड जस  बगनू  मि भेद भाव के जाणू,

म्यार लिजी द्विए किनार एक जास छिन।


मेरि नाव जाणि कैल डुबै के मालूम,

सब लहर सब धारा यां एक जास छिन।


कुछ आपण कुछ तेहति (पराय) और खुद मि,

म्यार जानक दुष्मण सब एक जास छिन।


आब बताओ यां कैथैं फ़रियाद करूं ’मदन’,

कातिल, कोतवाल और काजी सब एक जास छिन।


-----मदन मोहन बिष्ट

Saturday, November 12, 2011

डर लागैं....


क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं,
क्वे जब स्वैण दिखूं तो डर लागैं।

डुबी छी अन्यार में यसि जिन्दगी,
कि आब तो उज्याव में जाण में डर लागैं।

मांग न्है आज तक कैहैणि लै के,
फ़िर लै हाथ फ़ैलूण में डर लागैं।

देईं ध्वाक आपणोंल इतुक ज्यादा,
कि आब क्वे आपण बतूं तो डर लागैं।

जागणै उम्मीद आइ फ़िर जिन्दगी मैं,
देखियणै एक आस आइ कत्तिकै बै।

सोचौ कि कै दियू खुशीक यौ बात सब्बू थैं,
मगर दिलेकि बात सबुकैं बतूण मैं डर लागैं।

क्वे जब प्यार जतूं तो डर लागैं...

        ~मदन मोहन बिष्ट,  रुद्रपुर-उत्तराखण्ड~

Friday, June 24, 2011

गौंक हाल

गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणै गौं पनाक यास हाल देख बे...

बाट-घाटां सिसौण जामी छू, पाख मैं कुरिक झाल देख बे,
उधरि छन सब भिड गाडां पन, दरकी कुडिक दीवाल देख बे, 
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

बाखई-बाखाइ सुन्न पडी छन, जो घर छिन उनार हाल देख बे,
दुखी-दुखी जा  हंसन मुखाड सब  पधानिक पर चाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

नल बिन पाणि और नौव बांजी गो पाणिक हाहाकार देख बे,
बोठ, लगिल सब सुकी सुकी छन  गोरु बाछ लै बीमार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

सुवर, बानर भौते बढ गेईं, गौं वाल छन बेहाल देख बे,
फ़ूल, फ़ल ना दूद धिनाइ छू नान तिन चिपकी गाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

जू-शराब छु आम चलन में चुप पट्वारि- थाणदार देख बे,
सासु-ब्वारी सबै दुखी छन भोवाक करणधार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

निगेंइ हालीं सब गौं सरकारैल खुश छु उनार हाल देख बे,
आग लागणै म्यार भितेर आब शहरों कैं खुशहाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
...( मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखण्ड)...