Friday, June 24, 2011

गौंक हाल

गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणै गौं पनाक यास हाल देख बे...

बाट-घाटां सिसौण जामी छू, पाख मैं कुरिक झाल देख बे,
उधरि छन सब भिड गाडां पन, दरकी कुडिक दीवाल देख बे, 
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

बाखई-बाखाइ सुन्न पडी छन, जो घर छिन उनार हाल देख बे,
दुखी-दुखी जा  हंसन मुखाड सब  पधानिक पर चाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

नल बिन पाणि और नौव बांजी गो पाणिक हाहाकार देख बे,
बोठ, लगिल सब सुकी सुकी छन  गोरु बाछ लै बीमार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

सुवर, बानर भौते बढ गेईं, गौं वाल छन बेहाल देख बे,
फ़ूल, फ़ल ना दूद धिनाइ छू नान तिन चिपकी गाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

जू-शराब छु आम चलन में चुप पट्वारि- थाणदार देख बे,
सासु-ब्वारी सबै दुखी छन भोवाक करणधार देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।

निगेंइ हालीं सब गौं सरकारैल खुश छु उनार हाल देख बे,
आग लागणै म्यार भितेर आब शहरों कैं खुशहाल देख बे,
गौं जै रौछी,  डाड जै ऊंणे गौं पनाक यास हाल देख बे।
...( मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखण्ड)...