तुमूल तो बारिश कें सिर्फ़ बरसते हुए देखौ,
पर मील बारिश कैं कुछ कहते सुणते देखौ।
तुमूल देखौ बारिशक जल थल हर साल,
मील बूदों कं पलकों पर मचलते देखो।
कसीक मांगुल फ़िर बारिश अलबेर सावन में 'मदन',
यों आखोंल सावन में दुनियां कं उजडते देखौ।
सिख गोईं मि लै आब बारिशों में जीणेकि कला,
और फिर सब्बूंल मिकैं हमेशा हंसते देखौ।
...................................... मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखन्ड
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