Thursday, December 2, 2010

बखत नि मिल

यसि दौडी जिन्दगी, कि रुकणक बखत नि मिल,
खुशी भौत मिलीं, पर हंसणक बखत नि मिल।

मील लै सजे राखीं ’दी’  घर मैं आपण,
सिलाई  जलूणक पर बखत नि मिल।

जैकें चाण मै हरै गोइं, खुद भीड मैं मि,
ऊ सामणी छी  मिलणक बखत नि मिल।

मुरझै गेइं ऊं सब फ़ूल, जो छी  इन्तजार में,
हम कानां मै उलझी रयुं और बखत नि मिल।

जीवनक दौड मै जिन्दगी बिते दे,
कभैं जिन्दगी क जीणक बखत नि मिल।

खुशी भौत मिलीं जीवन मैं,
हंसणक पर बखत नि मिल।
           ....................मदन मोहन बिष्ट

2 comments:

  1. padhkar gaon ke bahut yaad aa gayee..
    likhte rahiye...aabhar
    naye saal kee haardik shubhkamnayne

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  2. Thanks Kavita jee, wish u n your family a very happy new year.

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