मुलकाक यास बर्बादीक असार नजर ऊणई,
चोरोंक दगाड याँ चोकीदार नजर ऊणई।
अन्यार आब कसी मिटोल त्वी बता भगवान्,
याँ उज्यावक दुश्मन सब चोकीदार नजर ऊणई।
हर गौं गाड़, हर सड़क पर, मौन छू ज़िंदगी ,
हर जाग मरघटाक जास हालात नजर ऊणई।
को सुणोल याँ आज द्रोपतीक चीख़ पुकार,
हर जाग दुस्साशन थाणदार नजर ऊणई।
सत्ता दगड समझौता करबे बिकगे लेखनी लै,
ख़बरों कें सिर्फ अब बाज़ार नज़र ऊणई।
सच्चाईक दगड द्यूण बण जां जुर्म आब,
सच और बेक़सूर आज गुनहगार नज़र ऊणई।
मुल्कक हिफाज़त सौंपि छू जनार हाथों मे,
ऊँ चोकीदारों में लै आज गद्दार नज़र ऊणई।
खंड खंड मे खंडित हैगो अखंड भारत आज,
हर जात, हर धर्म में ठेकेदार नज़र ऊणई....
~मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर
बिष्ट जी ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनाएं..आपकी कविताएँ निरंतर पढ़ता रहता हूँ..सीधे दिल पर लगती हैं..लिखते रहिये..पोस्ट करते रहिये..
ReplyDeleteधन्यवाद श्याम जी, कोशिश जारी है....
Deleteaajkalak halaton par badhiya kavita.
ReplyDeletedhanyavaad mitr..
DeleteGood Lines bishat ji Mujhe bhi Apne Pahar ranikhet Ki yaad ayi
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