Tuesday, August 28, 2012

सीख

आंसुओ तुम आंखोंक क्वाण पन आई नि करो,
घराक हालात दुनी कें बताई नि करो।
लोग मुट्ठी में लूण भर बे फ़िरणई,
ज़खम आपण सब्बू कें दिखाई नि करो।

आंख बची रौली तो स्वैण देखते रौला,
खाल्ली झुट स्वैण आखों में सजाई नि करो।
जे आपण हाथम छू उकैं भौत समझो,
लालच में ईमान धरम लुटाई नि करो।

कास-कास दिन ऊंनी और निकल जानी,
मणी सा दुख में हा-हाकार मचाई नि करो।
कमी भलै हैजो पर हाथ नि फ़ैलूंण पडो,
चादर बटी भैर पैर फ़ैलाई नि करो।

स्याप हमेशा खुश्बूक आसपासै रूनी,
खुशबू वाल पेड आंगन में सजाई नि करो।
जै पर भरोस हूं वी ध्वाक दीजां,
हर आदिम कें चुल तक लिजाई नि करो।

लोग आंगूं पकड बे गिरेवान तक बढ जानी,
बिना सोचिये मददक हाथ बढाई नि करो।
लोग हाथ मिलै बे आपण आंगू तक गिणनी ,
हर मिलणी वाल कैं छाति पर लगाई नि करो।

ख्वारम खुट धर बे लोग मांथि जाणक फ़िराक में छन
गरदन आपणि हर जाग पै झुकाई नि करो।
जिन्दगीक पन्नों पर पेन्सिल है ज्यादा रबड नि घिसो,
फ़ाटी पन्न जोडण मुस्किल हूं गल्ती इसी  बार बार दोहराई नि करो ।

आज बखतौक संदेश यो छू समझो ’मदन’,

साथ, सांस और स्वैण  कभतै लै टुट सकनी
इनू पर ज्यादा भरोस जताई नि करो।
------- मदन मोहन बिष्ट, रुद्रपुर, उत्तराखण्ड .........
            http://www.facebook.com/mmbisht

No comments:

Post a Comment